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Saturday, October 2, 2010

थे मत आया


क्षेत्र के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सत्यनारायण 'अमन' द्वारा चार दशक पूर्व लिखी गई 'थे मत आया' कविता आज के इस अवसरवादी परिपेक्ष्य में सटीक साबित हो रही है। आज अगर गांधीजी जिंदा होते तो ये माहौल देखकर खून के आंसू रोते-

गांधी जी चलग्या सुख पाया।
आ भ्रिस्टाचारी देख-देख,
काळा-बाजारी देख-देख,
ईं भाटां मारी भारत री
तस्कर-ब्योपारी देख-देख,
बा खोड़ पांवती दुख भया-
गांधीजी चलग्या सुख पाया।
ना तो अब धोळा भड ज्यांता,
छाती में राध पड़्यां सरती,
बीं डैण बापड़ै री आंख्या,
धरती में आज गड्यां सरती।

आ पटमेळी तो होणी ही,
चौड़ै आ ज्यांता परवाड़ा,
डभळी सी रोज भिळ्यां सरती,
इण कापडिय़ां री करतूतां,
छाती पर मूंग दळयां करती।
जे बापू कीं चूं-चां करता,
आडी देंता,
का चेलां नै कीं मोर-फोट जे
कै लेंता?

तो खद्दरिया,
स्हो कीं बिसरा,
सै भूल-भुला,
गुण-गाळ होय नै,
पल भर में,
कपड़ां स्यूं बारै हो लेंता,
औरंगजेब बण बापू नै,
खल्लै में पाणी प्या देंता,
ऐ नाकां चिणा चबा देंता।
गांधी-टोपी नै फाड़-फूड़,
टुकड़ा-टुकड़ा कर-
चरखै नै,
बाळण रै भाव बिका देंता।

ऐ कळछ-कळछ पड़ता सिगळा,
कळ-झळ कर भुं आयो बकता,
बापू नै कैंता-
'आं' री तो,
साठी बुध नाठी हुई आज,
म्हे साच कवां हां,
मानो सा।
इण री भगती में भंग पड़्यो,
गांधी री मत तो आंधी है,
ना देखै कीं आगो-पाछो,
ना भलै-बुरै रो ग्यान अठै,

जद ही तो ऐड़ा हाल हुया,
थे जाणो हो?
कण कियो देस नै खंड-खंड?
कण धरम-करम बरबाद कियो?
आ नीत अहिंसा है किण री-
जिण कारण इतरो रगत बयो?

आ सुणता जद,
तद के होंतो?
सै जाणै है।
बो आप डोकरो जाणै हो,
इण खातर आछो चल्यो गयो,
बो भर्यै भरम में चल्यो गयो।

जे रै ज्यांतो दो-च्यार बरस,
तो रंग ल्यांवती परवाई,
कै तो पंडत गांधी बणतो,
का गांधी करतो पंडताई।
पण फबगी अब,
बा आंख फूटगी,
पीड़ मिटी,
सै दूधां न्हाया सा होग्या,
ना पोत दियो,
ना भूंड मिली।

अब जड़ी मूरत्यां घर-घर में
सै तस्वीरां में गांधीजी,
अब राजघाट पर गांधी है,
बिड़लै-मिंदर में गांधी है,
ईं कास्मीर स्यूं लेकर कै-
कन्याकुमार तक गांधी है,
कै घणी कवूं
थे स्याणा हो
गांधी चेलां री चांदी है।

इसड़ा गांधी परणाम तनै,
सै समझै हैं इन्सान तनै,
पण हूं मानूं भगवान तनै,
इण खातर
हे भगवान!
तनै,
परणाम तनै, परणाम तनै!!
ओ आज जलम-दिन है थांरो,
आदर्स बण्यो म्हां सिगळां रो।
इण दिन माथै,
हूं अरज करूं
छोटी सी,
जे थे मान्या तो,

जुग-जुग तक अमर रवोला थे।
पूजैला और पुजावैला,
ऐ चेला-चांटी घर-घर जा,
गांधी री अलख जगावैला।

पण साची मान्या,
हरख-कोड,
ऐ कूड़ा लोग दिखाऊ है।
मत जीव डुलाया आं माथै,
जे जलम ले लियो अबकाळै,
तो माटी हुवै बिरान अठै,
अरदास करूं हूं बाबलिया,
थे सुणज्यो बैठ्या जठै-कठै।

ऐ न्होरा काढ बुलावै ला,
ऐ मोरां ज्यूं किररावै ला,
पण भूल-चूक ही भारत री-
धरती पर बापू मत आया।
यूं समझो मरग्या सुख पाया॥

2 comments:

  1. ब्लोगां री दुनियां में आप रो भोत-भोत सुआगत भाई विनय तिवाडी़ जी !
    आप रो ब्लोग गोख्यो !
    भोत दाय आयो !
    ज़बरो बणायो है !
    बधायजै !
    स्व. सत्यनारायण जी अमन सा रो गीत लगाय’र तो आप निहाल ई कर दिया ! जीव सोरो होयग्यो इण गी नै बांच’र ! ऐकर फ़ेरूं बधायजै !
    अमन जी री किताब है तो बां रा सगळा गीत लगाओ नीं !

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  2. ब्लोगां री दुनियां में आप रो भोत-भोत सुआगत भाई विनय तिवाडी़ जी !
    आप रो ब्लोग गोख्यो !
    भोत दाय आयो !
    ज़बरो बणायो है !
    बधायजै !
    स्व. सत्यनारायण जी अमन सा रो गीत लगाय’र तो आप निहाल ई कर दिया ! जीव सोरो होयग्यो इण गीत नै बांच’र ! ऐकर फ़ेरूं बधायजै !
    अमन जी री किताब है तो बां रा सगळा गीत लगाओ नीं !
    किताब री फ़ोटू अर ओ भी लगाओ-
    किताब रो नांव-
    विधा-
    प्रकाशक-
    प्रकाशन बरस-
    मोल-
    पान्ना-

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