
राजस्थानी में एक कहावत प्रचलित है ''गूंगा गांव ना बाळी, भली चेताई।'' राज्यों व केन्द्र सरकार की मनोदशा से लगता है कि ऐसा ही कुछ होने जा रहा है। फैसले की तारीख नजदीक आ रही है। श्रीराम जन्मभूमि के विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए इसी 24 तारीख को न्यायालय का फैसला आना है। फैसला क्या होगा... ये न्यायालय के अलावा अभी कोई नहीं जानता। लेकिन मीडिया को आने वाले छह-सात दिनों के लिए पूरा मसाला मिल गया है। फैसले की तारीख तक खबरिया चैनल्स चौबीसों घंटे इस मामले को पूरी तरह से न केवल भुनाएंगे बल्कि लोगों को अपने-अपने तरीकों से दिग्भ्रमित करेंगे। विभिन्न राज्यों की सरकारें भी खबरियां चैनलों के इसी ठर्रे को अपने-अपने तरीके से भुनाने में लगी है। फैसले की तारीख तय होने के साथ ही राज्य सरकारों ने सुरक्षा इंतजामों की दुहाई देते हुए केन्द्र से सुरक्षा 'कम्पनियों' की मांग शुरू कर दी है। कोई सरकार पचास कम्पनियां मांग रही है तो कोई सौ। सरकारों की इस मनोदशा से यही लगता है कि वो अपने कत्र्तव्यों, अपने दायित्वों से विमुख हो चुकी है और अपने-अपने राज्यों की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं रही। ये फैसला अंतिम नहीं है। इसके बाद भी कई मौके... कई अवसर मिलेंगे अभियुक्तों को। फिर क्यों सरकारें जनता को गुमराह कर रही है। सुरक्षा बलों का लवाजमा लोढऩे के बाद ये तय है कि वे सुरक्षा कर पाएंगी ? सुरक्षा के नाम पर जो करोड़ों का व्यय भार बढ़ेगा उसका खामियाजा कौन भरेगा? आखिर जनता पर ही यह बोझ पडऩे वाला है। सबसे अहम पहलु तो यह है कि राज्य सरकारों की यह बोखलाहट 1990 और 1992 की पुनरावृर्ती के बीज बो रही है। फैसले और फैसले के बाद की स्थिति को लेकर जनता में भले ही कोई विरोध के भाव ना हो लेकिन उसे लेकर जो फैसले के 'राजनीतिकरण' का खेल खेला जा रहा है उससे खुद सरकारों द्वारा 'वैमन्सय' फैलाने की 'बू' आ रही है। सरकारें चाहती है कि फैसले को भुनाकर 'राजनीति' का जामा पहनाया जाए और आगामी चुनावों के लिए वोट बैंक खड़ा किया जाए। धर्म और जाति के झगड़ों पर राजनीति की रोटियां सैक कर ही सरकारें चलती रही है। अब यही रोटियां न्यायालय के फैसले से सेकने की साजिश शुरू हो गई है। सरकारों को न्यायालय के फैसले से कोई सरोकार नहीं। जब तक दंगें नहीं होंगे, उपद्रव नहीं होंगे तब तक इस साजिश को अंजाम पर पहुंचाना कैसे संभव है। सरकारों की प्रशासनिक और राजनीतिक हलचलों से आम जनता में जो संदेश जा रहा है वह आने वाले कल के लिए ठीक नहीं है।
- राजेंद्र उपाध्याय
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