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Saturday, September 18, 2010

मल्कियत हमारी, ठरका उनका



ऐसे कई दृष्टांत हैं, जो स्थानीय अधिकारियों एवं भू माफिया के मध्य मिलीभगत की ओर इंगित करते हैं। इसी कारण पंजाब में राज्य सरकार की भूमि का अवैध उपयोग, अतिक्रमण लगातार जारी है। यह उस चिट्ठी का हिस्सा है, जो राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (इंटेलीजेंस) ने जल संसाधन विभाग के प्रमुख शासन सचिव को ज्ञापन के तौर लिखी और उसकी प्रतियां मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय और गृह विभाग के प्रमुख शासन सचिव को भी भेजी। पंजाब क्षेत्र में राजस्थान फीडर (इंदिरा गांधी नहर) की सम्पत्तियों पर हुए कब्जों को लेकर राज्य सरकार ने ही इंटेलीजेंस से जांच करवाई थी। जांच रिपोर्ट का एक-एक शब्द आंखें खोल देने वाला है। इंटेलीजेंस की यह जांच सिर्फ राजस्थान फीडर तक सीमित थी, लेकिन गंगनहर-पंजाब के हिस्से में जिसे बीकानेर कैनाल कहा जाता है-की सम्पत्तियों पर हुए कब्जों, सैकड़ों की तादाद में लगे हुए टयूबवैलों और मलबे या कब्जों की शिकार होती करोड़ों रुपये की अन्य सम्पत्तियों की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। बीकानेर कैनाल की कई सम्पत्तियां तो पंजाब में गुपचुप बेच दी गई, राजस्थान को इसकी भनक तक नहीं लगी। भनक लगने के बाद भी कोई ठोस कदम उठाये गये हों, किसी भी स्तर पर ऐसा नहीं लगता। राजस्थान फीडर और बीकानेर कैनाल के निर्माण के लिए पंजाब क्षेत्र में राजस्थान ने बाकायदा जमीनें खरीदी। उनके पैसे चुकाये। इंजीनियरों और अफसरों के रहने के लिए मकान, विश्राम गृह, सामान इत्यादि रखने के लिए गोदाम और इसी तरह के अनेक अन्य भवन बनवाये। करोड़ों रुपये की यह सम्पदा सार-संभाल के अभाव में या तो मलबे के ढेर में तब्दील हो रही है या फिर उन पर प्रभावशाली लोगों ने कब्जे कर लिये हैं। इन सम्पत्तियों को किराये पर देने या बेचने का ख्याल क्यों नहीं आया? यह सवाल खासा ताज्जुब मे डालने वाला है। इंटेलीजेंस की ही जांच साफ तौर पर कहती है कि पंजाब में काफी दूरी तक समानांतर चलने वाली राजस्थान फीडर और सरहिन्द फीडर के बीच का हिस्सा साझा है, लेकिन शेष बची जमीन राजस्थान सरकार की सम्पत्ति है, जिसमें नहर के किनारे लगे हुए पेड़ अवैध कटाई के कारण कम होते जा रहे हैं। पेड़ कटाई के बाद खाली होने वाली जमीन को नजदीकी किसान पहले समतल करते हैं और फिर उसमें खेती का सिलसिला शुरू हो जाता है। शहरों और कस्बों के आसपास की बेशकीमती जमीनों, जो राजस्थान सरकार की सम्पत्ति हैं, भू-माफिया बड़े पैमाने पर हथियाते जा रहे हैं। कहीं पर मैरिज पैलेस बन गये हैं तो कहीं पर आवासीय कॉलोनियां ही काट दी गई हैं। होटलों के निर्माण रातों-रात नहीं हुए, पर राजस्थान वालों को पता भी नहीं लगा। रिपोर्ट के मुताबिक, फरीदकोट से लेकर हरिके पतन तक राजस्थान फीडर के बाएं हिस्से को समतल कर लोगों ने उसे अपनी कृषि भूमि में मिला लिया और वहां टयूबवैल लगा लिये हैं। पम्प सैटों के जरिये कई किलोमीटर तक नहर का पानी चोरी करने का सिलसिला जारी है। आलम यह है कि हजारों की तादाद में पेड़ों के ठूंठ अवैध कटाई के जीते-जागते प्रमाण के तौर पर अभी भी मौजूद हैं। पंजाब के एक अधिशाषी अभियंता ने राजस्थान के हिस्से वाली जमीन में ही लम्बाई-चौड़ाई या अन्य कोई विवरण अंकित किये कुछ लोगों को रास्ते के अधिकार का आदेश पारित कर दिया, जिस आदेश के बाद काफी तादाद में पेड़ काटे गये, लेकिन आदेश में किसी तरह की शर्तों या नियमों का उल्लेख तक नहीं किया गया है। रिपोर्ट में साफ अंकित है कि उक्त विषय न केवल अत्यंत महत्वपूर्ण है बल्कि राजस्थान प्रदेश के हितों से जुड़ा होने के कारण तुरन्त ध्यान में लाये जाने योग्य भी है। यह स्थिति राजस्थान फीडर की है, तो अब बीकानेर कैनाल वाले हिस्से की तरफ देखते हैं। नहर की सीमा के बीच ही सैकड़ों की तादाद में आसपास के किसानों ने टयूबवैल लगा दिये हैं। बीकानेर कैनाल के निर्माण के समय अन्तरराज्यीय समझौते में बाकायदा प्रावधान किया गया था कि नहर का निर्माण सिर्फ राजस्थान को पानी की आपूर्ति के लिए किया जा रहा है और उसमें से एक बूंद पानी भी पंजाब में इस्तेमाल नहीं होगा, पर अब हालत अजीबो-गरीब हैं। एक तरफ राजस्थान के किसान पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं, तो दूसरी तरफ पंजाब में सैकड़ों किसान इसी नहर का पानी टयूबवैलों और पाइप लाइनों के जरिये सात-सात किलोमीटर तक ले जाकर अपने खेतों की फसलों को पाल रहे हैं। लगातार सिंचाई महकमे के अफसरों और सरकार को लिखते रहे किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता एडवोकेट सुभाष सहगल कहते हैं, 'हमारी सम्पत्तियां खुर्द-बुर्द होती चली गई, हमारे हिस्से का पानी दूसरे खोस रहे हैं, पर किसान चाहे कितना भी चीखे-चिल्लायें, सरकार की नींद ही नहीं टूट रही। इंटेलीजेंस की जांच रिपोर्ट को गंभीर मानते हुए जल संसाधन विभाग ने हनुमानगढ़ के मुख्य अभियंता (उत्तर) को खत लिखते हुए वस्तुस्थिति की जानकारी तो मांग ली, साथ ही कब्जों को रोकने के लिए कार्ययोजना बनाने के निर्देश भी दिये। यह निर्देश नीचे के अफसरों तक पहुंचे, लेकिन इसके बाद कार्ययोजना एक तरह से ठण्डे बस्ते में डाल दी गई। अफसोस की बात है कि जहां राजस्थान में खराब वित्तीय हालत का रोना रोया जा रहा है, लेकिन न तो इस करोड़ों रुपये की सम्पत्ति के बेहतर इस्तेमाल के उपायों पर चर्चा होती है और न ही पंजाब में खुलेआम अफसरों और किसानों की मिलीभगत से हो रही पानी की चोरी पर अंकुश लगाये जाने के बारे में सोचा जा रहा है। सहगल के शब्दों में 'अगर पंजाब में अपनी सम्पत्तियों की सार-संभाल पर ही राजस्थान सरकार पूरा ध्यान दे, तो उनसे नहरों के रख-रखाव के लिए जरूरी बजट का काफी हिस्सा हासिल किया जा सकता है। सवाल तो यही है कि ध्यान कौन दे? पिछले सालों में राजस्थान में सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की रही, उनके मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक ने दौरे कर हालात को अपनी आंखों से देखा। कार्ययोजनाएं बनाने के ऐलान हुए। जयपुर, चण्डीगढ़ में उच्च स्तरीय बैठकों के लिए लाखों रुपये के भत्ते हवा में उड़ा दिये गये। नतीजा सिफर। ऐसे में इंटेलीजेंस की जांच रिपोर्ट जब यह कहती है कि पंजाब क्षेत्र में किसानों द्वारा पानी की चोरी किये जाने से राजस्थान में आने वाली पानी की मात्रा कम हो जाती है, पानी की उपलब्धता घटने से सिंचाई और पेयजल आपूर्ति का हमेशा अभाव बना रहता है, जिसका नतीजा किसानों के लगातार आंदोलनों और प्रदर्शनों के रूप में सामने आ रहा है, तो भी नहीं लगता कि यह रिपोर्ट जमीनी स्तर पर किसी तरह के बदलाव का कारण बनेगी।
साभार:आरपी

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